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प्रगतिशील जायसवाल (कलार) समाज के विवादों के निराकरण की प्रक्रिया को जानें
                                                               जातीय एवं सामाजिक संस्कार
                                                                    ( देखें धारा -25)
खंड (अ) जन्म



 
नियम 1:- जन्म सूतक का शुद्धिकरण शास्त्रीय पद्धति से किया जावेगा |

नियम 2:- जन्मोत्सव पर खान-पान अपनी हैसियत के मुताबित कर सकेंगे। खान पान का आयोजन जन्मसूतक की शुद्धिकरण के पश्चात् कभी भी किया जा सकता है |

नियम 3:- परम्परागत पकवान आटे की लड्डू (ढूंढी, काके-पानी एवं सधौरी) की अनिवार्यता समाप्त की जाती है, जन्मोत्सव में कपड़े का लेन-देन पूर्णतः प्रतिबंधित है |

नियम 4:- जन्म की सूचना क्षेत्रीय प्रतिनिधि के माध्यम से संगठन को प्रेषित की जावेगी | इसे सम्बंधित पंजी में प्रविष्टि किया जावेगा |

खंड (ब) विवाह नियम 1:- बाल विवाह प्रथा असंवैधानिक होने से समाज में भी इसकी अनुमति नहीं दी जावेगी |

नियम 2 :- विवाह की प्रक्रिया वाक् दान (विवाह की बात पक्की करना), फलदान के क्रम में पूर्ण होगी |

नियम 3:- अवयस्क वर और कन्या का वाकदान नहीं किया जावेगा। वाकदान की सूचना, क्षेत्रीय सचिव के माध्यम से, संगठन को प्रेषित की जावेगी|

नियम 4:- फलदान विवाह तिथि से पूर्व अधिकतम एक माह के भीतर सम्पन्न हो सकेगा |

नियम 5 :- फलदान में पांच नारियल व अन्य फलों का प्रसाद, वर पक्ष को लाना आवश्यक होगा। जेवर (आभूषण) का कोई बन्धन नहीं है। कन्या के लिये आवश्यक वस्त्र ले जाना अनिवार्य होगा |

नियम 6 :- फलदान सम्पन्न होने के उपरान्त विवाह अनुबंध पूर्ण माना जायेगा। जो भी पक्षकार उसका उल्लंघन करेगा। वह सामाजिक व्यवस्था के अतिचार का दोषी होगा और ऐसा पक्षकार, समाज को समुचित क्षतिपूर्ति का देनदार होगा। पक्षकार को प्रेरित कर नया संबंध जोड़ने वाला पक्षकार भी समाज की क्षतिपूर्ति का देनदार होगा। क्षतिपूर्ति निर्धारण करने का अधिकार कार्यकारिणी को होगा |

नियम 7 :- फलदान संपन्न होने के पश्चात् , लग्न और मुहूर्त के अनुसार शास्त्रोक्त विधि से विवाह संपन्न हो सकेगा |

नियम 8 :- बारात, द्वार पूजा के लिये निर्धारित तिथि को शाम 6.00 बजे से पूर्व पहुंच जाना चाहिए तथा यथा संभव उसी रात्रि विवाह सम्पन्न हो जाना चाहिए |

नियम 9 :- सुहाग का कार्यक्रम, किसी देवी देवता के मंदिर में सम्पन्न कराया जा सकेगा । अन्य प्रक्रियाओं से यह मांगलिक कार्यक्रम न कराया जाय। चरण प्रक्षालन कार्यक्रम कन्या के पिता या परिवार के कोई भी जिम्मेदार सदस्य द्वारा वर का चरण धोकर अथवा स्थानीय रिवाज के अनुसार सम्पन्न किया जा सकेगा |

नियम 10 :- बारात आगमन पर, अगवानी से पूर्व, बारातियों से ठहरने की समुचित व्यवस्था (जनवासा) हो जाना चाहिये। बारातियों की संख्या, कन्यापक्ष के परामर्श से, पूर्व से निर्धारित कर लिया जाना चाहिए बारातियों के जलपान की व्यवस्था अगवानी से पूर्व हो जाना चाहिए |

नियम 11 :- बारात बिदाई तक भोजन व्यवस्था कन्या पक्ष को करनी होगी |

नियम 12 :- भोजन परोसने के बाद किसी के लिये इंतजार करना आवश्यक नहीं होगा। एक ही पंगत में भोजन कराना अनिवार्य नहीं है|

नियम 13 :- विवाह के समय रंग डालना सख्त मना है |

नियम 14 :- विवाह के समय मांगलिक गीत गाये जा सकते हैं | अपशब्दों का प्रयोग न किया जावे |

नियम 15 :- ऐसा कोई मनोरंजन कार्यक्रम नहीं किया जावेगा जिससे किसी व्यक्ति को शारीरिक कष्ट पहुचें | सुवासा ( ढेंढा) को किसी प्रकार से तंग नहीं किया जावेगा |

नियम 16 :- सिर्फ नेग (न्यौछावर) का खर्च, वरपक्ष, उदारता से वहन करेगा। शेष धोबी, नाई ,पौनी ,पसारी का खर्च, कन्या पक्ष वहन करेगा |

नियम 17 :- विवाह मांगलिक कार्य है कन्या पक्ष के साथ बाराती पक्ष के समस्त आत्मीय स्वजन को सहयोग पूर्ण व्यवहार करना चाहिये। कन्या पक्ष के आत्मीयजनों का पुनीत कर्तव्य होगा कि बारात को सम्मान पूर्वक विवाह मण्डप तक पहुंचाने में मदद पहुंचायें|

नियम 18 :- भोजन, कच्चा अथवा पक्का, कन्यापक्ष अपने सामर्थ के अनुसार, शुद्ध शाकाहारी करावेगा |

नियम 19:- शादी के दौरान मद्यपान एवं मांसाहार पूर्णरूप से प्रतिबंधित है |

नियम 20 :- भोजन चम्मच से ही परोसा जाना चाहिए |

नियम 21:- परंपरागत प्रथाएं _ पिंवरी - धोवाई, तिजाहि, पूछनी की प्रथा समाप्त की जाती है |

नियम 22 :- द्विरागमन- संस्कार , कन्या- दान पाणिग्रहण के तत्काल बाद संपन्न होगा |

नियम 23 :- वर- पक्ष द्वारा दहेज़ की मांग, नगद अथवा सामग्री के रूप में , पूर्ण रूप से निषिद्ध है |

नियम 24 :- मंडप के नीचे ही , सम्बन्धियों एवं इष्ट मित्रों द्वारा , यथाशक्ति भेंट, कन्या को दी जा सकेगी | भेंट में प्राप्त राशि एवं सामग्री की सूचि तैयार की जायेगी | ऐसी राशि एवं सामग्री पर पूर्ण स्वामित्व कन्या का होगा |

नियम 25 :- विधवा विवाह को सामाजिक मान्यता दी जाती है। इसे प्रोत्साहित करना समाज का नैतिक दायित्व है |

नियम 26 :- बहुविवाह पूर्णरूपेण निषिद्ध है। अर्थात् विधिवत् विवाह विच्छेद के पूर्व कोई भी विवाहित स्त्री अथवा पुरुष, किसी अन्य स्त्री अथवा पुरुष से विवाह संबंध स्थापित नहीं कर सकेगा। इस संबंध में राजकीय विधियों के प्रावधानों का पूर्णरूपेण अनुकरण किया जावेगा |

नियम 27 :- पति-पत्नी का सम्बंध विच्छेद सिर्फ उभय पक्ष की सहमति से ही स्वीकार किया जा सकेगा। ऐसे प्रकरण में पति-पत्नी संयुक्त रूप से आवेदन प्रस्तुत कर सकेंगे। उनके प्रत्यक्ष कथन कार्यकारिणी के समक्ष अंकित किए जायेंगे और कार्यकारिणी समिति को संतुष्टि होने पर संबंध विच्छेद की स्वीकृति प्रदान की जावेगी|

नियम 28 :- अनावश्यक व्यय (फिजूल खर्ची) रोकने हेतु सामूहिक विवाह (आदर्श विवाह) का आयोजन समाज द्वारा किया जा सकेगा। इसके लिये वर और कन्या पक्ष अपनी सहमति, लिखित रूप से अध्यक्ष के पास प्रस्तुत करेंगे ऐसे आवेदकों के आवेदन पत्र प्राप्त होने पर कार्यकारिणी समिति, पक्षकारों को एक निश्चित राशि जो कम से कम 501/- (पांच सौ एक रुपये) होगी, जमा करने का निर्देश देगी। रकम जमा होने पर समिति, ऐसे जोड़ों का विवाह, सामूहिक आदर्श विवाह आयोजित कर, शास्त्रीय पद्धति से सम्पन्न कराएगी |

नियम 29 :- निकटतम रक्त संबंधी में विवाह, सगोत्र जनों के बीच विवाह, शास्त्रोक्त के अनुसार निषिद्ध है, उससे संतति दुष्प्रभावित होती है, अतः ऐसे वैवाहिक संबंधों का प्रचलन रोका जावे। बेमेल विवाह निषिद्ध है |

नियम 30 :- विवाह का पंजीयन कराया जाएगा। उभय पक्ष पंजीयन शुल्क 101 रुपये जमा करेंगे। द्विरागमन लेने-लिवाने के दौरान सिर्फ दामाद को ही कपड़ा दे सकता है। अन्य को किसी प्रकार का कपड़ा या उपहार देना पूर्णतः प्रतिबंधित ऐसा करने वाला व्यक्ति दोषी माना जायेगा, तथा वह दण्ड का भागीदार होगा। |

खंड (स) मृत्यु संस्कार
नियम 1 :- किसी की मृत्यु हो जाने पर , परिवार के लोगों का शुद्धिकरण शास्त्रीय विधान से सम्पन्न होगा |

नियम 2 :- मृत्यु भोज एक बार ही पूर्ण शुद्धिकरण के पश्चात आयोजित किया जा सकेगा |

नियम 3 :- पिंडदान आदि के कार्यों में अधिक व अनावश्यक व्यय न किया जावे |

नियम 4 :- मृत्यु की सुचना संगठन को प्रेषित की जाएगी , जिसकी प्रविष्टि सम्बंधित पंजी में की जावेगी |

नियम 5 :- मृत्यु संस्कार में पगड़ी रस्म एक आवश्यक रश्म है | जिसमे व्यथित पक्ष के प्रमुख को नेंग पक्ष (अंत्यंत निकट संबंधी ) द्वारा केवल एक ही पगड़ी बाँधा जावेगा शेष उपश्थित आत्मीय जनों द्वारा आर्थिक सहायता के रूप में स्वेच्छानुसार राशि दी जा सकती है | उसी तरह रणसारी के रूप में व्यथित महिला के मायके से केवल एक ही साड़ी पहनाई जावेगी |

नियम 6 :- गंगा अस्थि प्रवाह के पश्चात वापस आने वाले व्यक्तियों को पगड़ी रस्म के समय आँगन में सामूहिक रूप से भेंट देना पूर्णतः वर्जित ( निषेध ) है |

नियम 7 :- दशगात्र के दिन तालाब अथवा नदी से सामूहिक स्नान के पश्चात शीघ्रातिशीघ्र चन्दन पान एवं पगड़ी रश्म का कार्यक्रम मध्यान्ह में सम्पन्न हो जाना चाहिए उसके तत्काल बाद सामूहिक भोजन की व्यवस्था दिन में हो जाना चाहिए |



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